ये दिन भी गुजर गया...
HJ-2015-16 हम तो सोच रहे थे कि फरवरी तक कॉन्वोकेशन होगा। चाहते भी यही थे कि जितना बाद में हो उतना अच्छा है। लेकिन अब हमारे चाहने से सब होता कहां है। जब से पता चला इस दिन के इंतजार में खुश हो रहा था लेकिन वैसी बेचैनी नहीं थी। जैसे अक्सर आईआईएमसी के नाम पर होती थी। जितनी खुशी सबके एकसाथ मिलने पर हो रही थी उससे ज्यादा दुख बिछड़ने के बारे में सोचने पर हो रहा था। इस मौके को थोड़ा सा यादगार बनाना चाहता था और थोड़ी देर तक साथ रुकने का बहाना भी चाहिए था इसलिए डीजे का प्लान किया था। लेकिन उसे बजवाने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ी उसके बारे में बताना मुश्किल है। इसी के चक्कर में सबसे ठीक से मिल नहीं पाया। कई लोगों के साथ फोटो खिंचवानी थी वो भी नहीं हो पाया , एक अप्लीकेशन लिए कभी इस केबिन में कभी उस केबिन के चक्कर काटते रह गया और आखिर में जब काफी गिड़गिड़ाने के बाद परमिशन मिली तो काफी लेग निकल चुके थे , वक्त की तरह। मैं ' ऊपर ' के किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिखना चाहता लेकिन आज तक मैंने इतनी छोटी सी चीज के लिए इतनी भगदौड़ नहीं की। खैर मुझे उसके बारे में अब कुछ नहीं कहना है। बस आईआईएमसी ...