क्या होता है जब...
क्या होता है जब कोई हमें छोड़कर चला जाता है...
मिलना-बिछड़ना, पाना-खोना, टूटना-बिखरना तो हमारी जिंदगी का हिस्सा है। हम जानते हैं कि जो कुछ भी आज हमारे पास है वो कल नहीं रहेगा। सब कुछ कभी न कभी तो खत्म हो जाएगा। रिश्ते-नाते, लोग बाग सबकुछ। यहां तक कि हमें भी एक दिन खत्म ही हो जाना है, फिर ये रिश्ता भला क्या चीज है। मैं प्यार की बात कर रहा हूं। एक इनसान जो हमें छोड़कर जा चुका है। हम उसकी यादों में पल-पल मर रहे हैं। कुछ अच्छा नहीं लग रहा। हर सांस एक बोझ लग रही है। कदम आगे नहीं बढ़ रहे। कुछ सूझ नहीं रहा। ऐसे लग रहा जैसे कि जिंदगी ठहर गई है। वही जिंदगी जो कुछ दिनों पहले बड़ी तेजी से न जाने कितने ख्वाब संजोए भाग रही थी। जिंदगी तो अब भी है, लेकिन अब हालात बिलकुल बदल गए हैं। लग रहा है कि जीने की उम्मीद ही खत्म हो गई। कुछ छूटने पर तकलीफ होना लाजिमी है। सब कुछ जानते हुए भी खुद को समझाना इतना मुश्किल क्यों हो जाता है?
जिंदगी में अगर खोने-पाने का हिसाब करने बैठूं तो न जाने कितना वक्त उन अफसानों को सोचने में गुजर जाएगा जो अधूरे रह गए। हकीकत में अधूरी हसरतों का बोझ इतना ज्यादा होता है कि हम उसे लेकर आगे नहीं बढ़ सकते। आगे बढ़ने के लिए उसे वहीं पर छोड़ देना बेहतर होता है। पता है कि ये कहने जितना आसान नहीं होता। लेकिन आपको पता होना चाहिए कि जिंदगी मुश्किलों का ही दूसरा नाम है और उन मुश्किलों से पार पाना जीने की जरूरत।
ये रिश्ते जब टूटते हैं, तो हमें इतनी तकलीफ क्यों होती है? इतना दर्द क्यों होता है? वजह साफ है कि वो इनसान जिसे अभी मेरे साथ होना था, नहीं है। वह इनसान सिर्फ इनसान नहीं बल्कि हमारे हंसने-रोने की वजह था। उसके साथ न जाने कितने अरमान जुड़े थे। आने वाली जिंदगी में हमने उसका अक्स देखा था। दुख है कि हमारा साथ मुकम्मल नहीं हो पाया। जैसे शरीर को ऊर्जा पाने के लिए खाने-पीने की जरूरत होती है वैसे ही मानसिक शांति और खुशी के लिए हमें प्रेम की जरूरत होती है और ये प्रेम हमें रिश्तों से मिलता है। वही प्रेम जो आपको छोड़कर चला गया है।
हम सोचते हैं कि पहले हमारी ख्वाहिशे हैं औऱ फिर हमारा काम। लेकिन नहीं, पहले हमारी जरूरतें हैं, फिर काम है और उसके बाद ख्वाहिश। हम सोचते हैं कि हम अपने जिस मकसद के लिए काम कर रहे हैं वह पूरा हो और जब वह पूरा नहीं होता तो हमें तकलीफ होती है। हमें खुश करने वाली ख्वाहिशें ही हमारे दुख की वजहें भी होती हैं।
दुख की वजहें होती हैं, लेकिन खुश हमें बेवजह होना पड़ता है। दुख की वजहें हमें बाहर से मिलती हैं, लेकिन खुशी हमें अपने भीतर खोजनी पड़ती है। वह किसी भी बाहरी चीज से नहीं मिलने वाली। दुख की वजह चाहे जो हो। खुश रहने की वजह आप ही होंगे। जैसे इस वक्त आपको बेहद कष्ट हो रहा है, क्योंकि आप उस दुख के बारे में लगातार सोचे जा रहे हैं। वैसे ही खुशी के बारे में सोचिये ना।
अब आपको रिश्ते तलाशने की जरूरत नहीं है। उस रिश्ते को भी आपने खोजा नहीं था। वक्त और आपकी सोच ने उसे मिला दिया था। वैसे ही फिर कोई साथ निभाने वाला मिल ही जाएगा। तब तक अकेले चलने का हौसला रखिये।
आज दुख है, पहले भी तो दुख था और ऐसा तो है नहीं कि आने वाले कल में दुख नहीं होगा। मसला ये नहीं है कि हमें दुख झेलना पड़ रहा है। दुख की वजहें तो हमेशा रहेंगी। बात दरअसल यह है कि हम उस दुख को कैसे स्वीकार करते हैं। उस दुख का समाधान कैसे खोजते हैं, उससे पार कैसे पाते हैं। यही जिंदगी है। हां कह सकते हैं कि दुख ही जिंदगी है।
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