दिल्ली से नैनीताल
वैसे तो मैं छोटी-बड़ी कई यात्राएं कर चुका हूं, लेकिन अभी तक किसी भी सफर का लेखा-जोखा यानी सफरनााम नहीं लिख पाया। उसका कोई और नहीं सिर्फ एक ही कारण है, आलस। आलस वो बला है जिसके सामने बड़ी-बड़ी हसरतें दम तोड़ देती हैं। तो इस बार यानी नैनीताल यात्रा के बाद सोचा है कुछ लिखना पड़ेगा।
घूमने का शौक मुझे बहुत है जैसे हर किसी का होता है। पिछली बार कश्मीर गया था। उसके बाद छह महीने हो गए कहीं जाने का मौका नहीं मिला। मौका क्या, दरअसल नौकरी और ऑफिस से कहीं जाने का प्लान ही नहीं बना पाया। वैसे सच कहा जाए अगर आप कुछ ज्यादा ही प्लानिंग के चक्कर में रहते हों तो बड़े मुश्किल से घूम पाएंगे। इस बार ऑफिस से काफी पहले ही छुट्टी अप्रूव करवा ली थी। सोचा था कि अमित और मैं उत्तराखंड में कहीं घूमने जाएंगे, लेकिन बीच में पारीक ने स्कूटर से गिरा दिया। चोट को देखते हुए अमित से बोलना पड़ा कि कहीं ट्रिप-विप नहीं हो पाएगी। तो उसने अपनी छुट्टी कैंसल करा दी। जब मेरी छुट्टी की तारीख नजदीक आने लगी तो चोट बिलकुल ठीक हो चुकी थी, लेकिन अमित ने जाने से मना कर दिया, बोला कि अब मैं अचानक छुट्टी नहीं ले सकता। मतलब अब मेरा अकेला ही घूमना होगा।
उत्तराखंड में कहीं घूमने का प्लान था, लेकिन कहां घूमना है ये अभी तक डिसाइड नहीं था। नैनीताल के बारे में थोड़ा सर्च किया तो लगा कि ये सबसे बढ़िया जगह रहेगी। ट्रेन के बारे में पता किया तो टिकट फुल्ल। खैर जनरल डिब्बा जिंदाबाद का नारा लगाते हुए मैं 29 नवंबर को दिल्ली स्टेशन की ओर रवाना हो गया।
नैनीताल जाने के लिए पहले काठगोदाम जाना पड़ता है, नैनीताल पहाड़ों पर बसा शहर है और पहाड़ों पर ट्रेन नहीं चलती। रात 10 बजे दिल्ली होकर एक ट्रेन जाती है रानीखेत एक्सप्रेस। जैसलमेर से काठगोदाम। सुबह पांच बजे तक काठगोदाम पहुंचा देती है। मैंने जनरल का टिकट लिया, लेकिन जब ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आ गई तो भीड़ देखकर लगा कि जनरल डिब्बे में सफर करना हमसे ना हो पाएगा। स्लीपर में चढ़कर एक कोने में सीट पकड़ ली। लेकिन रात में सब यात्री सोने लगते हैं तो बैठने को भी सीट नहीं मिलती। आरपीएफ वालों ने पूछा तो बता दिया कि जनरल का टिकट है, और पेनाल्टी कटवानी है। वो बोले कि जल्दी टीटी से मिलकर टिकट कटाओ नहीं तो अगले स्टॉपेज पर उतरकर जनरल की तरफ दफा हो जाओ। मैंने टीटी से दो-तीन बार कहा, लेकिन वो अभी-तभी कहकर टालता रहा। शायद उसे पेनल्टी न काटकर पैसे अपने जेब में रखने का मन था। खैर इस बीच आरपीएफ के दो सिपाही जो एक साइड लोअर की पूरी बर्थ कब्जाए हुए थे। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, टीटी के चक्कर में न पड़ो और हमें पैसे दो, हम तुम्हें सीट देते हैं आराम से सोते हुए जाना। मैंने हां कर दिया। वह तीन सौ मांग रहा था। मैंने दो सौ में उसे राजी कर लिया। उसने थोड़ी ही देर में बगल में ही एक अपर बर्थ दे दी और कहा जाओ आराम से सो जाओ।
नींद तो काफी देर में आई। जब आंख लगी तो पता चला काठगोदाम आ गया है। अब आधी अधूरी नींद में उतरना पड़ा। बाहर निकला तो काफी तेज ठंडी हवाएं चल रही थीं। स्टेशन के सामने एक आदमी नैनीताल-नैनीताल चिल्लाते हुए एक आदमी मिला। मेरे पास आकर उसने पूछा, कहां नैनीताल। मैंने कहा हां, लेकिन कितना? उसने कहा सौ रुपये। मैंने कहा इतना कहां लगता है। वह बोला डेढ़ सौ लगते हैं, एक सीट खाली है, जल्दी निकलना है इसलिए सौ रुपये ही ले रहा हूं। मैंने ज्यादा सोच विचार न करते हुए हां कर दी। ऑल्टो कार थी।
अगले भाग में जारी...
घूमने का शौक मुझे बहुत है जैसे हर किसी का होता है। पिछली बार कश्मीर गया था। उसके बाद छह महीने हो गए कहीं जाने का मौका नहीं मिला। मौका क्या, दरअसल नौकरी और ऑफिस से कहीं जाने का प्लान ही नहीं बना पाया। वैसे सच कहा जाए अगर आप कुछ ज्यादा ही प्लानिंग के चक्कर में रहते हों तो बड़े मुश्किल से घूम पाएंगे। इस बार ऑफिस से काफी पहले ही छुट्टी अप्रूव करवा ली थी। सोचा था कि अमित और मैं उत्तराखंड में कहीं घूमने जाएंगे, लेकिन बीच में पारीक ने स्कूटर से गिरा दिया। चोट को देखते हुए अमित से बोलना पड़ा कि कहीं ट्रिप-विप नहीं हो पाएगी। तो उसने अपनी छुट्टी कैंसल करा दी। जब मेरी छुट्टी की तारीख नजदीक आने लगी तो चोट बिलकुल ठीक हो चुकी थी, लेकिन अमित ने जाने से मना कर दिया, बोला कि अब मैं अचानक छुट्टी नहीं ले सकता। मतलब अब मेरा अकेला ही घूमना होगा।
उत्तराखंड में कहीं घूमने का प्लान था, लेकिन कहां घूमना है ये अभी तक डिसाइड नहीं था। नैनीताल के बारे में थोड़ा सर्च किया तो लगा कि ये सबसे बढ़िया जगह रहेगी। ट्रेन के बारे में पता किया तो टिकट फुल्ल। खैर जनरल डिब्बा जिंदाबाद का नारा लगाते हुए मैं 29 नवंबर को दिल्ली स्टेशन की ओर रवाना हो गया।
नैनीताल जाने के लिए पहले काठगोदाम जाना पड़ता है, नैनीताल पहाड़ों पर बसा शहर है और पहाड़ों पर ट्रेन नहीं चलती। रात 10 बजे दिल्ली होकर एक ट्रेन जाती है रानीखेत एक्सप्रेस। जैसलमेर से काठगोदाम। सुबह पांच बजे तक काठगोदाम पहुंचा देती है। मैंने जनरल का टिकट लिया, लेकिन जब ट्रेन प्लेटफॉर्म पर आ गई तो भीड़ देखकर लगा कि जनरल डिब्बे में सफर करना हमसे ना हो पाएगा। स्लीपर में चढ़कर एक कोने में सीट पकड़ ली। लेकिन रात में सब यात्री सोने लगते हैं तो बैठने को भी सीट नहीं मिलती। आरपीएफ वालों ने पूछा तो बता दिया कि जनरल का टिकट है, और पेनाल्टी कटवानी है। वो बोले कि जल्दी टीटी से मिलकर टिकट कटाओ नहीं तो अगले स्टॉपेज पर उतरकर जनरल की तरफ दफा हो जाओ। मैंने टीटी से दो-तीन बार कहा, लेकिन वो अभी-तभी कहकर टालता रहा। शायद उसे पेनल्टी न काटकर पैसे अपने जेब में रखने का मन था। खैर इस बीच आरपीएफ के दो सिपाही जो एक साइड लोअर की पूरी बर्थ कब्जाए हुए थे। उन्होंने मुझे अपने पास बुलाया और कहा, टीटी के चक्कर में न पड़ो और हमें पैसे दो, हम तुम्हें सीट देते हैं आराम से सोते हुए जाना। मैंने हां कर दिया। वह तीन सौ मांग रहा था। मैंने दो सौ में उसे राजी कर लिया। उसने थोड़ी ही देर में बगल में ही एक अपर बर्थ दे दी और कहा जाओ आराम से सो जाओ।
नींद तो काफी देर में आई। जब आंख लगी तो पता चला काठगोदाम आ गया है। अब आधी अधूरी नींद में उतरना पड़ा। बाहर निकला तो काफी तेज ठंडी हवाएं चल रही थीं। स्टेशन के सामने एक आदमी नैनीताल-नैनीताल चिल्लाते हुए एक आदमी मिला। मेरे पास आकर उसने पूछा, कहां नैनीताल। मैंने कहा हां, लेकिन कितना? उसने कहा सौ रुपये। मैंने कहा इतना कहां लगता है। वह बोला डेढ़ सौ लगते हैं, एक सीट खाली है, जल्दी निकलना है इसलिए सौ रुपये ही ले रहा हूं। मैंने ज्यादा सोच विचार न करते हुए हां कर दी। ऑल्टो कार थी।
अगले भाग में जारी...
Comments
Post a Comment