काठगोदाम से नैनीताल
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हमारी कार में पीछे एक नवयुगल शायज नवदंपत्ति थे और बुढ़िया मां बैठी थीं। जो पीछे युवक बैठा था उसे रास्ते में उल्टियां होने लगीं तो कार वाले ने दो तीन बार रोका। घंटे भर बाद हम नैनीताल में थे। जब सब कार से उतर गए तो ड्राइवर ने मुझसे कहा आपको कहां जाना है, मैंने कहा, नैनीताल आ गया। उसने कहा- हां। मैं अच्छा कहते हुए कार से उतर गया। उतरते ही बहुत तेज ठंड हवा का झोंका मुझे छूकर गया। मन प्रसन्न हो गया, लेकिन थोड़ी ही देर में मैं कांपने लगा। मेरे पास सिर्फ एक हूडी थी। और वह मुझे नैनीताल की ठंड से बचाने के लिए नाकाफी थी। दो चार कदम चलने पर माल रोड था। वहीं पर एक चाय-सिगरेट की दुकान दिखी। मसाला मस्त चाय ऑर्डर की। किसी तरह खत्म की। सुबह हो गई थी, लेकिन सूरज का निकलना बाकी था। तब तक वहीं बैठकर और चाय पीता रहा और गूगल पर देखता रहा कि कहां-कहां घूमा जा सकता है। जब पहले से कुछ खास प्लानिंग न हो तो सोलो ट्रेवलिंग में यही होता है। आपको एंड मौके पर डिसाइड करना होता है कि जाना कहां है।
मैंने कुछ जगहें देखीं और फिर फ्रेश होने के लिए इंतजाम तलाशने लगा। एक होटल में पचास रुपये देकर नहाने-धोने की सुविधा मिल गई। ऑफ सीजन था, नहीं तो चार सौ मांग रहा था। नहा धोकर निकले तो हलकी-हलकी धूप निकल रही थी। कुछ खाने का भी मन कर रहा था। तो खाने की तलाश करने लगा। होटल और रेस्त्रां तो कई दिखे लेकिन मन मुताबिक कुछ ढंग का नहीं मिल रहा था। आखिर में एक छोटा सा होटल मिला जहां पराठे, ऑमलेट और गरमा गरम चाय नसीब हुई। पेट भर के खाया। उसके बाद माल रोड के चक्कर लगाने लगाए। काफी सुबह हो चुकी थी। अच्छी-खासी चहल पहल हो गई थी। तो मैंने अचानक से सोचा कि पहाड़ों पर सफर करना है। बस बिना ज्यादा सोचे निकल बस अड्डे पर पहुंचा और पूछा कि रामगढ़ जाना है। पता चला कि पहले भवाली जाना पड़ेगा फिर वहां से साधन मिल जाएगा। बस उस वक्त नहीं थी। काउंटर पर बैठी महिला ने बताया कि ये सामने जो गाड़ियां लगी हैं ये भी बस के बराबर ही पैसे लेती हैं। उस पर बैछकर मैं भवाली तक पहुंचा। सिर्फ बीस रुपये लिये। उसके बाद वहां से एक बस मिली और शुरू हो गया पहाड़ों का सफर।
बस में लोग चढ़ रहे थे, उतर रहे थे और मुझे पता ही नहीं था कि जाना कहां है। मैंने बस कंडक्टर से कहा कि रामगढ़ तक जाना है। काफी देर बाद जब रामगढ़ आया, लेकिन मुझे बस के सफर में मजा आ रहा था तो उससे पूछा आप कहां तक जाओगे। उसने कहा ये बस मैं अपने गांव ले जाऊंगा। मैंने कहा, उसके बाद? उसने कहा फिर हम वापस आएंगे। हमने कहा ओके। तुम बस चले रहो। वापसी पर भवाली उतर जाऊंगा। पैसे वहीं ले लेना। फिर क्या था, बस हिचकोले और पहाड़ के साथ हमें भी घुमाती रही।
सूरज की किरणें धीरे-धीरे जमीन पर उतर रही थीं, लेकिन ठंड से कंपकंपी कम नहीं हो रही थी। नहाने और फ्रेश होने के लिए एक होटल खोजा। होटल वाले से घंटे भर के लिए सौ रुपये मे बात तय हो गई। होटल से निकलने के बाद थोड़ी सी पेट पूजा की गई उसके बाद तय किया कि यहां तो कल भी घूम लेंगे पहले आस-पास के इलाकों में घूम लेते हैं। बस से ही घूमकर शाम 5 बजे तक वापस आ गए। शाम को डियर जिंदगी नहीं देखी थी। नैनीताल में माल रोड पर ही मिलन सिनेमा नाम से एक हॉल है। रात का शो देखने वाले बहुत थोड़े लोग ही थे। डियर जिंदगी देखकर वापस माल रोड पर ही टहलता रहा। दस बजे के बाद माल रोड एकदम शांत हो जाता है। खाने पीने की दुकानें भी बंद हो जाती हैं। एकदम सन्नाटा पसर जाता है। झील के शुरुआत में ही एक चाय की दुकान है, बहुत अच्छी चाय बनाता है। वहीं झील के पास में पड़ी बेंच पर बैठकर रात के सुनसान सन्नाटे में चाय की चुस्कियां लेता रहा। ठंडी हवाएं इतनी तेज चल रही थीं कि वहां ज्यादा देर तक बैठना मुश्किल लग रहा था। चायवाले ने आग जला रखी थी। आग में हाथ सेंककर होटल चला गया और सो गया।
रात में देर से सोने की वजह से थोड़ी देर में नींद खुली। खिड़की से परदा हटाकर देखा तो काफी तेज धूप निकली हुई थी, लेकिन ठंड लग रही थी। सुबह के नौ बज चुके थे और बाहर काफी चहलकदमी शुरू हो गई थी। जल्दी से रजाई से बाहर निकला और फटाफट नहा धोकर तैयार हो गया। आज समझ नहीं आ रहा था कि कहां घूमें। नैनीताल की खूबसूरती मुझे कन्फ्यूज कर रही थी। खैर बैग समेट कर निकल गया। इंटरनेट पर घूमने की जगहों में जिम कार्बेट का घर भी दिखा रहा था। ज्यादा सोच विचार न करते हुए ज
सूरज की किरणें धीरे-धीरे जमीन पर उतर रही थीं, लेकिन ठंड से कंपकंपी कम नहीं हो रही थी। नहाने और फ्रेश होने के लिए एक होटल खोजा। होटल वाले से घंटे भर के लिए सौ रुपये मे बात तय हो गई। होटल से निकलने के बाद थोड़ी सी पेट पूजा की गई उसके बाद तय किया कि यहां तो कल भी घूम लेंगे पहले आस-पास के इलाकों में घूम लेते हैं। बस से ही घूमकर शाम 5 बजे तक वापस आ गए। शाम को डियर जिंदगी नहीं देखी थी। नैनीताल में माल रोड पर ही मिलन सिनेमा नाम से एक हॉल है। रात का शो देखने वाले बहुत थोड़े लोग ही थे। डियर जिंदगी देखकर वापस माल रोड पर ही टहलता रहा। दस बजे के बाद माल रोड एकदम शांत हो जाता है। खाने पीने की दुकानें भी बंद हो जाती हैं। एकदम सन्नाटा पसर जाता है। झील के शुरुआत में ही एक चाय की दुकान है, बहुत अच्छी चाय बनाता है। वहीं झील के पास में पड़ी बेंच पर बैठकर रात के सुनसान सन्नाटे में चाय की चुस्कियां लेता रहा। ठंडी हवाएं इतनी तेज चल रही थीं कि वहां ज्यादा देर तक बैठना मुश्किल लग रहा था। चायवाले ने आग जला रखी थी। आग में हाथ सेंककर होटल चला गया और सो गया।
रात में देर से सोने की वजह से थोड़ी देर में नींद खुली। खिड़की से परदा हटाकर देखा तो काफी तेज धूप निकली हुई थी, लेकिन ठंड लग रही थी। सुबह के नौ बज चुके थे और बाहर काफी चहलकदमी शुरू हो गई थी। जल्दी से रजाई से बाहर निकला और फटाफट नहा धोकर तैयार हो गया। आज समझ नहीं आ रहा था कि कहां घूमें। नैनीताल की खूबसूरती मुझे कन्फ्यूज कर रही थी। खैर बैग समेट कर निकल गया। इंटरनेट पर घूमने की जगहों में जिम कार्बेट का घर भी दिखा रहा था। ज्यादा सोच विचार न करते हुए ज
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