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काठगोदाम से नैनीताल

इस यात्रा को शुरू से पढ़ने के लिए क्लिक करेें... हमारी कार में पीछे एक नवयुगल शायज नवदंपत्ति थे और बुढ़िया मां बैठी थीं। जो पीछे युवक बैठा था उसे रास्ते में उल्टियां होने लगीं तो कार वाले ने दो तीन बार रोका। घंटे भर बाद हम नैनीताल में थे। जब सब कार से उतर गए तो ड्राइवर ने मुझसे कहा आपको कहां जाना है, मैंने कहा, नैनीताल आ गया। उसने कहा- हां। मैं अच्छा कहते हुए कार से उतर गया। उतरते ही बहुत तेज ठंड हवा का झोंका मुझे छूकर गया। मन प्रसन्न हो गया, लेकिन थोड़ी ही देर में मैं कांपने लगा। मेरे पास सिर्फ एक हूडी थी। और वह मुझे नैनीताल की ठंड से बचाने के लिए नाकाफी थी। दो चार कदम चलने पर माल रोड था। वहीं पर एक चाय-सिगरेट की दुकान दिखी। मसाला मस्त चाय ऑर्डर की। किसी तरह खत्म की। सुबह हो गई थी, लेकिन सूरज का निकलना बाकी था। तब तक वहीं बैठकर और चाय पीता रहा और गूगल पर देखता रहा कि कहां-कहां घूमा जा सकता है। जब पहले से कुछ खास प्लानिंग न हो तो सोलो ट्रेवलिंग में यही होता है। आपको एंड मौके पर डिसाइड करना होता है कि जाना कहां है।  मैंने कुछ जगहें देखीं और फिर फ्रेश होने के लिए इंतजाम तलाशने

दिल्ली से नैनीताल

वैसे तो मैं छोटी-बड़ी कई यात्राएं कर चुका हूं, लेकिन अभी तक किसी भी सफर का लेखा-जोखा यानी सफरनााम नहीं लिख पाया। उसका कोई और नहीं सिर्फ एक ही कारण है, आलस। आलस वो बला है जिसके सामने बड़ी-बड़ी हसरतें दम तोड़ देती हैं। तो इस बार यानी नैनीताल यात्रा के बाद सोचा है कुछ लिखना पड़ेगा। घूमने का शौक मुझे बहुत है जैसे हर किसी का होता है। पिछली बार कश्मीर गया था। उसके बाद छह महीने हो गए कहीं जाने का मौका नहीं मिला। मौका क्या, दरअसल नौकरी और ऑफिस से कहीं जाने का प्लान ही नहीं बना पाया। वैसे सच कहा जाए अगर आप कुछ ज्यादा ही प्लानिंग के चक्कर में रहते हों तो बड़े मुश्किल से घूम पाएंगे। इस बार ऑफिस से काफी पहले ही छुट्टी अप्रूव करवा ली थी। सोचा था कि अमित और मैं उत्तराखंड में कहीं घूमने जाएंगे, लेकिन बीच में पारीक ने स्कूटर से गिरा दिया। चोट को देखते हुए अमित से बोलना पड़ा कि कहीं ट्रिप-विप नहीं हो पाएगी। तो उसने अपनी छुट्टी कैंसल करा दी। जब मेरी छुट्टी की तारीख नजदीक आने लगी तो चोट बिलकुल ठीक हो चुकी थी, लेकिन अमित ने जाने से मना कर दिया, बोला कि अब मैं अचानक छुट्टी नहीं ले सकता। मतलब अब मेरा अके

ये दिन भी गुजर गया...

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HJ-2015-16 हम तो सोच रहे थे कि फरवरी तक कॉन्वोकेशन होगा। चाहते भी यही थे कि जितना बाद में हो उतना अच्छा है। लेकिन अब हमारे चाहने से सब होता कहां है। जब से पता चला इस दिन के इंतजार में खुश हो रहा था लेकिन वैसी बेचैनी नहीं थी। जैसे अक्सर आईआईएमसी के नाम पर होती थी। जितनी खुशी सबके एकसाथ मिलने पर हो रही थी उससे ज्यादा दुख बिछड़ने के बारे में सोचने पर हो रहा था। इस मौके को थोड़ा सा यादगार बनाना चाहता था और थोड़ी देर तक साथ रुकने का बहाना भी चाहिए था इसलिए डीजे का प्लान किया था। लेकिन उसे बजवाने के लिए जितनी मेहनत करनी पड़ी उसके बारे में बताना मुश्किल है। इसी के चक्कर में सबसे ठीक से मिल नहीं पाया। कई लोगों के साथ फोटो खिंचवानी थी वो भी नहीं हो पाया , एक अप्लीकेशन लिए कभी इस केबिन में कभी उस केबिन के चक्कर काटते रह गया और आखिर में जब काफी गिड़गिड़ाने के बाद परमिशन मिली तो काफी लेग निकल चुके थे , वक्त की तरह। मैं ' ऊपर ' के किसी व्यक्ति का नाम नहीं लिखना चाहता लेकिन आज तक मैंने इतनी छोटी सी चीज के लिए इतनी भगदौड़ नहीं की। खैर मुझे उसके बारे में अब कुछ नहीं कहना है। बस आईआईएमसी

एक है सुमेरा...

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सुमेरा उस वक्त के संघी और   IIMC   के पहले साथी रवि पारीक के साथ फेसबुक पर बहस हो रही थी। बीच में ये भी मजे ले रहा था। मुझे नहीं पता था ये भी IIMC का ही नमूना है। पता नहीं कब लिस्ट में आ गया था। खैर हम दिल्ली पहुंचे। साथ में रहने के बारे में कुछ बात हुई थी लेकिन बात बन नहीं पाई।ये विष्णु भैया के साथ रहने लगा।IIMC शुरू होने के एक दो दिन पहले देर शाम इनबॉक्स में एक मैसेज आया, गंगा ढाबा आ सकते हो क्या? समय था लेकिन काम का बहाना बनाकर मना कर दिया। पहले दिन क्लास में मिले। रवि की तरफ इशारा करते हुए इसने कहा कि अपने दोस्त से मिल लो और हंसने लगा। वो बहस इसको याद थी। ज्यादा किसी से पहचान नहीं हुई थी लेकिन जब बातचीत शुरू हुई तो पता चला जिनको ये जानता है उन्हें मैं भी अच्छे से जानता हूं। जे भैया को अच्छे से जानता था। उनको एडमायर करता था। इसी बहाने और भी बातें होतीं। चेहरे पर घनी दाढ़ी, कंधे पर झोला लटकाए, माइनस चेचिस की शरीर लिए डरा सहमा एकदम पीछे हमारे साथ ही बैठता था। छुट्टी होने के बाद मुझे कटवारिया जाना होता लेकिन  इसे छोड़ने के बहाने बहाने पूर्वांचल निकल जाता था। वहां बस स्टैं