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रातों का अकेलापन सिखाता बहुत है

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जुलाई का महीना बारिश के साथ नई कॉपी-किताबों की खुशबू भी लेकर आता है। कहने को ही सही अपनी भी पढ़ाई जारी है तो आज कॉलेज वापसी हो गई। दिन भर सामान यहां से वहां करने और उसे समेटकर हॉस्टल के रूम तक पहुंचाने में सुबह से शाम हो गई। और इस चक्कर में इतनी थकान लग गई कि लगा बिस्तर मिल जाए तो भरे बोरे की तरह शरीर को फेंक दूं। लेकिन सुबह से कुछ खाया नहीं था। पेट ने कहा कुछ खा लो नहीं तो तुम्हारी सुबह तक की गारंटी मैं नहीं ले सकता। मजबूरी थी सो खाना पड़ा। खाकर वापस रूम पर आया और कमरे की लाइटें बुझाकर बिस्तर पर लेट गया। थकान को देखते हुए मुझे तुंरत नींद आ जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं। आधे घंटे तक बिस्तर पर इधर से उधर करवटें बदलता रहा। चुपके से फोन की लाइट जलाई तो देखा घंटे बीतने को हैं। थोड़ी सी बेचैनी और बढ़ गई। मुझे पता था दिल में काफी कुछ भरा है, लेकिन जानबूझ कर वहां पहुंचना नहीं चाहता था। सोच रहा था बस किसी तरह रात गुजर जाए। लेकिन रात गहराती जा रही थी और हॉस्टल में चहल-पहल की आवाजें भी बंद हो चुकी थीं। थोड़ी सी उमस थी और मेरा गला भी सूख रहा था। बिस्तर से उठा और पानी की बोतल उठाकर बालकनी