बेवजह मुस्कुराने की भी वजह होती है...


तस्वीर से कहानी का कुछ वास्ता है

पंख लगाए उड़ते इस वक्त में बेचैनी जैसी फोन के भीतर ही क़ैद होती है, मन कहीं होता, हम कुछ भी सोच रहे होते हैं और हाथ जेब में रखे फोन पर चला जाता है। उसके काले शीशे के भीतर लगी लाइटों को हम जलाते हैं और पता नहीं क्या करके वापस रख देते हैं। किसी को देखकर थोड़ा सुकून पाने की कोशिश कर रहे होते हैं। फोन वापस जैकेट की अंदर वाली जेब में जाता है और हाथ किसी लोहे जैसी चीज से टकराता है। ये छल्ले में लगी चाभी नहीं होती। ऐसी तो कोई चीज जेब में नहीं हो सकती। फिर क्या? मन संशय से भरने को ही होता है कि इतना सोचना नहीं पड़ता। उस चीज को बाहर निकालना भी नहीं पड़ता। होठों की मुस्कुराहट से दिल को मालूम हो जाता है कि दिल से थोड़ी दूर पर रखी ये चीज, दरअससल दिल से ही जुड़ी है। फोन में जिस चेहरे को देखकर दिल को सुकून देने की कोशिश कर रहे थे, वो सुकून इस झुमके को छूकर मिल गया।

एक लड़के की जेब में झुमके! नहीं ये उसे देने के लिए नहीं, बल्कि उससे मांगे गए झुमके होते हैं। हां मांगे गए। पता नहीं उसे झुमके पसंद हैं या नहीं, लेकिन जब हम साथ में बैठे थे तो ये उसके कानों में चूड़ियों जैसा शोर पैदा कर रहे थे। उसने वहीं इसे उतार दिया था और बिना किसी लाज के ये हाथ उसकी ओर बढ़ गए थे, मुझे दे दो। तुम इनका क्या करोगे....? ऐसे ही पास रखूंगा, देखूंगा तो तुम्हारी याद आ जाएगी। खुद को पता था कि जो हर पल ख्यालों में हो उसे याद करने की जरूरत कैसे पड़ सकती है, लेकिन उस वक्त तो यही शब्द निकले थे। उसने भी बड़ी बेफिक्री से हाथों में वो झुमके रख दिए थे। अब उसे कहां पता होगा कि दिल के करीब रहने वाले ये झुमके, भारी मन की कड़वाहट पर शहद या मिसरी की तरह घुल जाएंगे, जिसका असर मुस्कुराता चेहरा बयां कर रहा होगा।



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